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    दान में मिले दिलों से AIIMS ने दी 1000 मरीजों को नई जिंदगी

    AIIMS Image Source : FILE

    नई दिल्ली. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के चिकित्सकों ने दान में मिले दिल की मदद से हाल ही में पांच साल के एक बच्चे के वॉल्व की मरम्मत कर उसे नई जिंदगी दी। AIIMS के कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्क्युलर डिपार्टमेंट (सीटीवीएस) ने होमोग्राफ्ट वॉल्व के जरिए जन्म के समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे जिस बच्चे की जान बचाई है वह इस तरह का 1000वां मरीज है। सीटीवीएस के प्रमुख डॉ. शिव चौधरी ने ‘भाषा’ को बताया कि होमोग्राफ्ट टिश्यू (ऊतक) का एक शरीर से निकालकर दूसरे शरीर में प्रत्यारोपण किया जाता है। दिल की सर्जरी में होमोग्राफ्ट की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।

    उन्होंने बताया कि होमोग्राफ्ट वॉल्व व टिश्यू (ऊतक) को सड़क हादसे में मारे गए लोगों के शवों से उनके परिजनों की सहमति के बाद लिया जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक एम्स को 723 लोगों के परिजनों ने दिल दान किए जिनसे 1564 वॉल्व और अन्य टिश्यू सुरक्षित किये गये। चौधरी ने बताया कि यह दो तरह के मरीजों में बेहद उपयोगी है। पहला उन बच्चों में जिनके दिल में जन्म के समय से ही परेशानी होती है। जैसे कुछ बच्चों में लंग्स (फेफड़े) के साथ जुड़ाव और दाहिनी तरफ का दिल पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। इस तरह के बच्चों के लिए होमोग्राफ्ट अनमोल है। दूसरा, मरीज के स्वयं के अनियंत्रित संक्रमण के कारण वॉल्व खराब हो जाता है।

    डॉ. चौधरी के अनुसार किसी हादसे में या किसी बाहरी चोट के कारण जान गंवाने वाले व्यक्ति की मौत के 24 घंटे के अंदर हमें शरीर से दिल निकालना होता है। इसके साथ इसके आसपास की जुड़ी कुछ और चीजों जैसे- मैंब्रेन और उससे जुड़ी आर्टरी को भी लिया जाता है। हार्ट सर्जरी में एक मृतक के दिल और होमोग्राफ्ट से दो से चार मरीजों का इलाज किया जाता है जिसमें दो वॉल्व, एओरटा, पेरिकार्डियम शामिल है।

    डॉ. चौधरी ने बताया कि मृत व्यक्ति के पोस्टमार्टम से पहले उसके परिजनों से अंगदान का अनुरोध किया जाता है। इसके लिए मेडिकल स्वयं सेवी संस्था और एम्स स्थित ऑर्गन रिट्राइवल एंड बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ओआरबीओ) प्रयास करती है। अगर परिजन मान जाते हैं तो डॉक्टर और तकनीकी विशेषज्ञ शरीर से दिल निकालते है जिसे एम्स के होमोग्राफ्ट वॉल्व बैंक में रखा जाता है। यह एम्स के कार्डियक सर्जरी विभाग की विशेषज्ञ सुविधा है, जहां नाइट्रोजन के लिक्विड में माइनस 173 डिग्री सेल्सियस तापमान के टैंक में होमोग्राफ्ट वॉल्व, एअरोटा, पेरिकार्डियम को अलग अलग करके सुरक्षित रखा जाता है। मानवीय अंगों को सुरक्षित रखने की इस प्रक्रिया को क्रायोप्रिजर्वेशन कहा जाता है। इसके तहत हार्ट को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

    डॉ. चौधरी ने बताया कि हार्ट को क्रायोप्रिजर्वेशन में नहीं रखे जाने की स्थिति में हम इसका उपयोग छह सप्ताह तक ही कर सकते हैँ। ऑपरेशन से पहले निकाले गए होमोग्राफ्ट का नौ बार परीक्षण और पांच एंटीबायोटिक से संशोधित किया जाता है ताकि पहले के मरीज का कोई भी संक्रमण किसी भी तरह से आगे न जा सके। उन्होंने बताया कि एम्स में इलाज कराने वाले मरीजों के लिए ऑपरेशन बेहद किफायती दर पर यानि सिर्फ पांच हजार रुपये पर उपलब्ध है। जबकि बाजार में उपलब्ध दूसरे विकल्प के इस्तेमाल में दो से चार लाख रुपये का खर्च आता है।

    उन्होंने कहा कि कम खर्च के बाद भी होमोग्राफ्ट वाल्व व ऊतकों की उपलब्धता बेहद कम है। यहां तक की एम्स में भी इनके मरीजों की प्रतीक्षा सूची लंबी है। इसका बड़ा कारण है समाज में अंगदान के प्रति लोगों में कम जागरुकता। सामाजिक रूढियों की वजह से लोग मृत्यु के बाद परिजनों के अंगदान से परहेज करते हैं, जबकि मृत शरीर के दान किए गए अंगों से कई अनमोल जीवन बचाए जा सकते हैं। गौरतलब है कि एम्स में 1994 में प्रोफेसर ए.संपत द्वारा कार्डियोथोरेसिक एंड वैस्क्युलर सर्जरी (सीटीवीएस) डिपार्टमेंट में वॉल्व बैंक की स्थापना की गई थी। यह देश का सबसे पुराना और सफल हार्ट वॉल्व बैंक और उत्तर भारत का एकमात्र दिल के वाल्व का बैंक है। 



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