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    लॉकडाउन के 1 महीने पूरे, जानें कैसी है Coronavirus महामारी की रफ्तार

    One month of lockdown: Experts feel it helped in preventing US or Europe like situation

    नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिए लागू देशव्यापी लॉकडाउन को एक महीना पूरा हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने सही समय पर सही फैसला लेकर खुद को अमेरिका और यूरोप जैसी स्थिति में पहुंचने से बचा लिया। लॉकडाउन न होता तो भारत में भी लाखों की संख्या में लोग बीमार होते। आप कह सकते हैं कि वायरस की शुरुआती धमक के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कड़ा फैसला लिया जिसने आगे असर दिखाया और बेहतर असर दिखया। 

    देश में शुक्रवार तक कुल कोरोना केस 23077 थे। जिनका इलाज़ चल रहा है उनकी संख्या 17610 थी और मरने वालों की संख्या 718 थी। सबसे बड़ी बात ये है कि 4748 केस ठीक हो चुके हैं। 28 दिनों में 15 जिलों से कोरोना का कोई केस नहीं है, तो 80 जिलों में 14 दिनों से कोई नया मामला नहीं आया है।

    जाहिर है आर्थिक दृष्टि से हम विकसित देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं, बावजूद इसके हमारा कोरोना मैनेजमेंट मजबूत है। मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि हर रोज़ जांच की संख्या बढ़ रही है लेकिन संक्रमण और पॉजिटिव मामले की रफ्तार देखें तो ये कहना गलत नहीं होगा कि देश को लॉकडाउन ने बचा लिया।

    24 मार्च को लॉकडाउन शुरू हुआ और एक हफ्ते बाद यानि 30 मार्च को मामलों की संख्या थी 1251 और डबलिंग रेट 5.2 यानी लगभग 5 दिन में कोरोना के मामले दोगुने हो रहे थे, मगर लॉकडाउन के दूसरे हफ्ते ये रफ्तार थोड़ी बढ़ गई। 31 मार्च से 6 अप्रैल के बीच 4421 केस सामने आए तब डबलिंग रेट 4.2 हो गई यानी केस 4 दिन में दोगुने होने लगे लेकिन तीसरे हफ्ते में चौंकाने वाला सुधार हुआ। 7 से 13 अप्रैल के बीच कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या तो 10,363 हो गई मगर डबलिंग रेट 6 हो गई। यानी अब केस 6 दिन में दोगुने हो रहे थे।

    अब बात 14 से 20 अप्रैल के बीच की बात करें तो इस दौरान केस हुए 18,601 जो पिछले हफ्ते के मुकाबले दोगुना लग सकता है लेकिन यहां डबलिंग रेट रहा 8.6, यानी अब केस 6 दिन की बजाए 8 दिन में केस डबल हो रहे थे और अब जब केस 23 हजार से ज्यादा हैं तो डबलिंग रेट 10 है, यानी कोरोना मामलों को डबल होने में अब 10 दिन लग रहे हैं।

    दरअसल कोरोना को कंट्रोल करने में उसकी रफ्तार पर लगाम ही सबसे जरूरी है। अगर 5 लाख टेस्ट कराने के बाद हम 20 हजार केस तक पहुंचे तो इतने ही टेस्ट के बाद ब्रिटेन में 1 लाख 20 हजार पॉजिटिव मिले थे तो अमेरिका में अमेरिका 80 हजार। इसी से आप समझ सकते हैं कि मोदी की टीम ने किस तरह कोरोना की रफ्तार को काबू किया है। सरकार ने आज एक और आंकड़े के जरिए ये बताया कि अगर लॉकडाउन नहीं होता तो कोरोना संभावितों की संख्या कितनी पहुंच चुकी होती।

    25 मार्च यानी लॉकडाउन के पहले दिन भारत में कोरोना के 657 केस थे, 25 मार्च से 6 अप्रैल के बीच कोरोना के केस रोजाना 16 परसेंट के हिसाब से बढ़ रहे थे और अगर इसी रेट से 6 अप्रैल से लेकर 23 अप्रैल तक के कोरोना मरीजों का अनुमान लगाएं तो ये संख्या 73 हजार को पार कर जाती है। यानी अगर 16 फीसदी के हिसाब से मामले बढते तो 23 अप्रैल तक 73 हजार 400 कोविड-19 के मामले देश के सामने होते लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 6 अप्रैल को भारत में कोरोना के 4 हजार 778 मामले थे लेकिन 23 अप्रैल तक भारत में 23 हजार मामले सामने आए।

    इन आंकड़ों को देखने के बाद बात पर यकीन कर सकते हैं कि हम कोरोना के तीसरे फेज में नहीं पहुंचे हैं क्योंकि जो भी देश तीसरे फेज में पहुंचा वहां मौतों की संख्या बेहिसाब बढ़ती चली गई है। अमेरिका और यूरोप से तुलना करें तो भारत में लॉकडाउन काफी कारगर साबित हुआ है। लॉकडाउन के बाद भारत में चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंध हटाए जाने चाहिए।



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