इन तीन चीजों से हमेशा मनुष्य को बनाए रखनी चाहिए सौ गज की दूरी, एक की भी चपेट में आना कर देगा जिंदगी बर्बाद
आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देने पर आधारित है।
"ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि मनुष्य को ऋण, शत्रु और रोग इन तीनों का ही इलाज तुरंत कर देना चाहिए। अगर ऐसा न हुआ तो ये तीनों ही चीजें इंसान को राजा से रंक भी बना सकती हैं। ये तीनों ही चीजें ऐसी है जिनका इलाज अगर समय पर नहीं हुआ तो ये दीमक की तरह इंसान की जिंदगी को धीरे-धीरे खत्म कर देती है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी लकड़ी पर दीपक लग जाए तो वो उसे अंदर से धीमे-धीमे खाकर खोखला कर देती है। ऐसे लकड़ी बाहर से देखने में तो आपको कई बार एकदम ठीक लगेगी लेकिन हाथ लगाते ही ताश के पत्ते के समान जमीन पर गिर जाती है।
इसी तरह से अगर इंसान के जीवन में आई ये तीनों चीजें ऋण, शत्रु और रोग तीनों किसी दीमक से कम नहीं हैं। अगर आपने किसी से मोटी रकम बतौर उधार ली है तो उसके चुकाने में आपकी जिंदगी के कई साल निकल जाते हैं। यहां तक कि आपको मूल से ज्यादा तो कई बार ब्याज चुकाना पड़ता है। इस तरह से उसकी सारी कमाई ऋण को चुकाने में ही निकल जाती है।
ऋण की तरह से शत्रु भी है। अगर आपका कोई शत्रु है तो आपसे बदला लेने के लिए साम, दंड और भेद तीनों नीतियों को अपना सकता है। ऐसे में आप हमेशा डर के साए में रहेंगे। हो सकता है कि शत्रु की वजह से आपका सबकुछ दांव पर भी लग जाए। इसी तरह रोग भी है। अगर शरीर स्वस्थ है तो सब कुछ अच्छा है। अगर शरीर किसी रोग की चपेट में आ गया तो आपके शरीर को दीपक की तरह अंदर से खोखला कर देगा। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
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