Coronavirus पर गुजरात से बड़ी खबर, जीनोम की हुई पहचान; वायरस की पहचान और वैक्सीन बनाने में मिलेगी मदद
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से पूरी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। हिंदुस्तान में भी कोरोना संकट लगातार बड़ा होता जा रहा है जो लोगों को डरा रहा है। कोरोना की टेंशन के बीच गुजरात से गुड न्यूज आई है। गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में कोरोना के जीनोम सीक्वेंस की पहचान की है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने खुद ट्वीट करके ये जानकारी दी है। जीनोम से वायरस की पहचान और वैक्सीन बनाने में मदद मिलेगी।
इस बीच गुजरात में कोरोना वायरस संक्रमण के 127 नये मामले सामने आने के साथ राज्य में कुल मामले बढ़ कर 766 हो गये। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। इनमें से 88 नये मामले अहमदाबाद में सामने आये हैं। सूरत में नौ मामले, जबकि वड़ोदरा में आठ मामले बुधवार को सामने आये।
नर्मदा जिले में प्रथम दो मामले, वहीं बोतड और खेड़ा जिलों में एक-एक मामले सामने आये। भावनगर में दो, राजकोट मे छह, पंचमहल में तीन और आणंद में सात मामले सामने आये हैं। गुजरात में बुधवार को पांच संक्रमित मरीजों की मौत हो गई जिससे राज्य में मृतकों की संख्या बढ़ कर 33 पहुंच गई है।
Gujarat is proud of scientists at Gujarat Biotechnology Research Centre (GBRC), the only State Govt laboratory in India that has reported COVID19 whole genome sequence which will be helpful in tracking origin, drug targets, vaccine & association with virulence.#IndiaFightsCorona
— CMO Gujarat (@CMOGuj) April 15, 2020
इससे पहले संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने बुधवार को कोविड-19 का पूर्ण जीनोम अनुक्रमण तैयार करने की घोषणा की थी। यह इस प्राणघातक कोरोना वायरस के उद्गम का पता लगाने का अहम हथियार है। कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिये देश के प्रयासों को बढ़ाने के वास्ते गठित कोविड-19 कमान एवं नियंत्रण केंद्र (सीसीसी) के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि इस वायरस के 30 हजार आनुवांशिकी आधार (जीन) है। उल्लेखनीय है कि कई अन्य देश भी मरीजों के नमूने वायरस का जीनोम अनुक्रमण तैयार कर रहे हैं।
हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि कोरोना वायरस के आनुवंशिकी में औसतन हर दूसरे हफ्ते बदलाव आ रहा है। ऐसे में वायरस का आनुवांशिकी अनुक्रमण (जेनेटिक सीक्वेंस) और विभिन्न मरीजों में समय के साथ आने वाले इसकी आनुवंशिकी में बदलाव के अध्ययन से वैज्ञानिकों को इसके प्रसार के बारे में समझने और महामारी को रोकने में मदद मिलेगी।
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