Coronavirus: Lockdown से उत्पन्न समस्याओं की वजह से गई 300 से ज्यादा लोगों की जान, अध्ययन में हुआ खुलासा
नई दिल्ली। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान मौत के 300 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए हैं, जो प्रत्यक्ष तौर पर तो कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़े नहीं हैं लेकिन इससे जुड़ी अन्य समस्याएं इनका कारण हैं। शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में यह खुलासा किया है। अध्ययन में दो मई तक हुए मौत के मामलों को ही शामिल किया गया है। इसके बाद भी कई लोगों की मौत लॉकडाउन या कोरोना वायरस से जुड़ी समस्याओं के कारण हुई है।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में शुक्रवार को एक मालगाड़ी की चपेट में आने के बाद 14 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। जालना से भुसावल की ओर पैदल जा रहे मजदूर मध्य प्रदेश लौट रहे थे। शोधकर्ताओं के समूह में पब्लिक इंटरेस्ट टेक्नोलॉजिस्ट तेजेश जीएन, सामाजिक कार्यकर्ता कनिका शर्मा और जिंदल ग्लोबल स्कूल ऑफ लॉ में सहायक प्रोफेसर अमन शामिल हैं। इस समूह का दावा है कि 19 मार्च से ले कर दो मई के बीच 338 मौतें हुईं है, जो लॉकडाउन से जुड़ी हुई हैं।
अध्ययन के अनुसार आंकडें बताते हैं कि 80 लोगों ने अकेलेपन से घबरा कर और संक्रमित पाए जाने के भय से खुदकुशी कर ली। इसके बाद मरने वालों का सबसे बड़ा आंकड़ा है प्रवासी मजदूरों का। बंद के दौरान जब ये अपने घरों को लौट रहे थे तो विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में 51 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई। विड्रॉल सिम्टम्स (शराब नहीं मिलने से) से 45 लोगों की मौत हो गई और भूख एवं आर्थिक तंगी से 36 लोगों की जान गई।
शोधकर्ताओं ने एक बयान में कहा गया है कि संक्रमण के डर से, अकेलेपन से घबरा कर, आने-जाने की मनाही से बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्याएं की हैं। बयान में कहा गया कि उदाहरण के तौर पर विड्रॉल सिम्टम्स से ठीक तरह से निपट नहीं पाने से सात लोगों ने आफ्टर शेव लोशन अथवा सैनेटाइजर पी लिया, जिससे उनकी मौत हो गई।
पृथक केंद्रों में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने संक्रमण के भय से, परिवार से दूर रहने की उदासी जैसी हालात में आत्महत्या कर ली अथवा उनकी मौत हो गई। इस समूह ने समाचार पत्रों, वेब पोर्टलों और सोशल मीडिया की जानकारियों को मिला कर ये आंकडें तैयार किए हैं। उल्लेखनीय है कि देश में कोविड-19 से 56,000 से अधिक लोग संक्रमित हुए है, जिनमें से 1,800 लोगों की मौत हो गई है।
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