Header Ads

  • Breaking News

    निर्जला एकादशी 2020: जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा, साथ ही जानिए इसे क्यों कहते है भीमसेनी

    निर्जला एकादशी Image Source : TWITTER/TEMPLEFOLKSCOM

    आज ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की उदया तिथि एकादशी और मंगलवार का दिन है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी व्रत करने का विधान है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है | प्रत्येक महीने में दो एकादशियां होती हैं, एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में आती है | उत्तम संतान की इच्छा रखने वालों को शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास एक वर्ष तक करना चाहिए।   एकादशी का व्रत रखने से श्री हरि अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं | सभी एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की इस निर्जला एकादशी का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है|

    निर्जला एकादशी में निर्जल यानी बिना पानी पिए व्रत करने का विधान है। इस एकादशी का पुण्य फल प्राप्त होता है। कहते हैं जो व्यक्ति साल की सभी एकादशियों पर व्रत नहीं कर सकता, वो इस एकादशी के दिन व्रत करके बाकी एकादशियों का लाभ भी उठा सकता है। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारे में।

    निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त

    एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 जून दोपहर 2 बजकर 57 मिनट 

    एकादशी तिथि समाप्‍त: 2 जून 12 बजकर 04 मिनट तक
    पारण का समय- 3 जून को सुबह 5 बजकर 23 मिनट से 8 बजकर 8 तक 

    र्जला एकादशी के साथ दो योगों का शुभ संयोग, बिजनेस में बढ़ोतरी के लिए करें ये अचूक उपाय

    निर्जला एकादशी पूजा विधि

    एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें और पीले वस्त्र धारक करके भगवान विष्णु का स्मरण करें। इसके बाद शेषशायी भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें।  भगवान की पूजा धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से करने के साथ रात को दीपदान करें। पीले फूल और फलों को अर्पण करें। इस दिन रात को सोए नहीं। सारी रात जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें।

    अगले दूसरे दिन यानी कि 3 जून के दिन उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें। इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाता है।

    राशिफल 2 जून: धनु राशि वालों के अधूरे काम होंगे पूरे, जानिए बाकी राशियों का हाल

    निर्जला एकादशी

    निर्जला एकादशी

    निर्जला एकादशी व्रत कथा

    एक बार भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं भगवान की भक्ति, पूजा आदि तो कर सकता हूं, दान भी दे सकता हूं किंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता।

    इस पर व्यासजी कहने, हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येकमास की दोनों एकादशियों को अन्न मत खाया करो। इस पर भीम बोले हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूं, क्योंकि मेरे पेट में वृक नामक अग्नि है जिसके कारण मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या मेरे लिए एक समय भी बिना भोजन के रहना कठिन है।

    अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। इस पर श्री व्यासजी विचार कर कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है।

    ऐसा सुनकर भीमसेन घबराकर कांपने लगे और व्यासजी से कोई दूसरा उपाय बताने की विनती करने लगे। कहते हैं कि ऐसा सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। इस एकादशी में अन्न तो दूर जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल का प्रयोग वर्जित है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए और न ही जल ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत टूट जाता है। इस एकादशी में सूर्योदय से शुरू होकर द्वादशी के सूर्योदय तक व्रत रखा जाता है। यानी व्रत के अगले दिन पूजा करने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।

    व्याजजी ने भीम को बताया कि इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान ने बताया था। यह व्रत सभी पुण्य कर्मों और दान से बढ़कर है। इस व्रत मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।



    from India TV Hindi: lifestyle Feed https://ift.tt/2AwHwTA

    No comments

    Post Top Ad

    loading...

    Post Bottom Ad

    loading...